या भारतात बंधुभाव नित्य वसू दे। दे वरचि असा दे।
हे सर्व पंथ संप्रदाय एक दिसू दे। मतभेद नसू दे ॥धृ o॥
नांदतो सुखे गरिब-अमिर एक मतानी। मग हिंदू असो ख्रिश्चन वा हो इस्लामी।
स्वातंत्र्य सुखा या सकलामाजि वसू दे। दे वरचि असा दे॥१॥
सकळास कळो मानवता, राष्ट्रभावना। हो सर्वस्थळी मिळुनि सामुदायिक प्रार्थना।
उद्योगी तरुण वीर शीलवान दिसू दे। दे वरचि असा दे ॥२॥
हा जातिभाव विसरुनिया एक हो आम्ही। अस्पृश्यता समुळ नष्ट हो जगातुनी।
खळ निंदका मनीहि सत्य न्याय वसू दे। दे वरचि असा दे ॥३॥
सौंदर्य रमो घरा-घरात स्वर्गियापरी। ही नष्ट होऊ दे विपत्ति भीती बाहेरी।
तुकड्यादास सदा सर्वदा सेवेत कसू दे। दे वरचि असा दे ॥४॥
-राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज